Thursday, 6 June 2019

"तू अगर मुझे नवाज़े तो तेरा करम है मेरे मालिक, वरना तेरी रहमतो के काबिल मेरी बंदगी नहीं !!

एक मुसलमान फ़क़ीर हुआ !
वो बीस साल एक ही मस्जिद में और एक ही जगह दिन में पांच बार नमाज़ पढता था !
इतने वर्षो से एक ही जगह नमाज़ पढ़ते रहने के कारण अब तो लोगो ने उसकी जगह फिक्स ही कर दी ! सब नमाज़ी जानते थे की यह जगह उस फ़क़ीर की है ! बीस वर्ष बाद एक आकाशवाणी हुई और उसमे कहा की हे नमाज़ी तो सतत बीस बरस से जो नमाज़ अदा कर रहा है ! अल्लाह ने उसे क़ुबूल नहीं की है !
यह सुन कर बाकी के नमाज़ी तो रोने लग गए ! कोई पांच साल लगातार नमाज़ अदा कर रहा था तो कोई दस साल से !!
बाकी नमाज़ी यह सुन कर छाती पीट पीट कर रोने लग गए !!
लेकिन वो फ़क़ीर उठा और ख़ुशी से झूम उठा ! नाचने लग गया और परमात्मा का धन्यवाद् देने लग गया ! ख़ुशी के मारे मस्जिद के दीवारों को चूमने लग गया ! आँखों से अश्क़ बहे जा रहे थे और वो झूम झूम के परमात्मा के सुखद गीत गाये जा रहा था !
लोगो ने समझा की यह फ़क़ीर पागल हो गया है ! इसने सुना नहीं की आकाशवाणी ने क्या कहा है !
लोगो के उसे पकड़ा और निचे बिठा के कहा की यह क्या कर रहे हो तुम ? लगता है तुमने उस आवाज़ को ठीक से सुना नहीं, जरुर तुम्हे सुनने में भूल हो गयी है ! तुम्हारी सतत बीस बरस की पांचो वक़्त की नमाज़ अल्लाह में कुबूल नहीं की है !
तुम्हे तो छाती पीट पीट कर और दहाड़े मार मार के रोना चाहिए ! अल्लाह से शिकायत करनी चाहिए की मेरी बंदगी में कहाँ कमी रह गयी ?
फ़क़ीर हंसा और बोला की कैसी शिकायत और कैसा रोना ?
अरे उसने मेरी बीस बरस की नमाज़ कुबूल ना की तो ना सही ! मुझे कुछ हासिल हो यह सोच के तो मैंने कभी बंदगी की ही नहीं !

अरे उस उपरवाले को मेरी नमाज़ नहीं कुबूल है तो ना सही , लेकिन वो यह तो जानता है की कोई बीस साल से उसकी बंदगी में लगा है ! फल मिले या ना मिले उसका कोई ज़िक्र ना नहीं है तो ना सही , लेकिन बीस बरस से कोई उसकी खिदमत में जुटा है यह तो उसको पता है !!
"तू अगर मुझे नवाज़े तो तेरा करम है मेरे मालिक, वरना तेरी रहमतो के काबिल मेरी बंदगी नहीं !!



हरी तत्सत
मुकेश सोनी

1 comment:

  1. Waah waah, Rab tera lakh lakh shukrana

    ReplyDelete

Thanks