आओ जाने घूँघट प्रथा के बारे में ..
"नियत आदमी की ख़राब होती है और परदे में औरतो को रहना पड़ता है !!"
रामायण काल में कभी माता सीता ने या द्वापर काल में द्रोपदी ने कभी घूँघट नहीं किया ! तो इससे ये तो पता चलता है की घूँघट की प्रथा आदि काल से नहीं चली आ रही !
जब उस वक़्त ये प्रथा मौजूद नहीं थी तो ये आयी कहाँ से ?? ये एक सवाल है..
घूँघट प्रथा का जन्म अगर हम राजस्थान से कहे तो कुछ गलत नही होगा ! मुग़ल काल में मुस्लमान हिन्दू बहिन बेटियो को उनकी सुंदरता देख कर उठा ले जाते थे, उनका शारीरिक शौषण करते और अपने हराम में गुलाम बना के रखने लगे ! इससे बचने के लिए कुछ बुद्धिजीवियों ने बहिन बेटियो को परदे में रहने के सुझाव दिए ! जो उस वक़्त की नजाकत को देखते हुए सही थे !
स्त्री को परदे में रखने का रिवाज फिर मान-सम्मान बन गया ! मुग़ल शासको को भी ये पता चल गया की राजपूत या हिन्दू बाहुल्य समाज अपनी औरतो की इज़्ज़त करता है और उसके लिए लिए मारने मारने का विषय है ! परदे में रखने से औरतो को उठा ले जाना और उनके शौषण में कमी आयी या काफी हद तक ख़त्म हो गया !
लेकिन श्रीमान ! अब तो मुग़ल काल नहीं है ! अब तो वो सुरक्षित है ! उस वक़्त तो परदे में रहना इसलिए जायज मान सकता हूँ की मुगलकालीन लोग हमारे अपने समाज के नहीं थे, उनके मन में हमारी औरतो के लिए कोई मान सम्मान नहीं था ! उनके मन में हमारी बहिन बेटियो के लिए काम वासना थी ! उन्हें हमारी आज़ादी और इज़्ज़त का ख्याल नहीं था ! श्रीमान जी आपको और मुझे तो है. सैकड़ो या हज़ारो सालो से अगर एक झूठ भी चलता आ रहा है तो वो भी सच हो जाता है ! इसके बारे में चिंतन करो और मनन करो ! सोचो की क्या हम अपनी वासना औरतो पर थोप नहीं रहे! नियत हमारी ख़राब है और परदे में औरते रहे !
मेरे ये विचार मेरे मन की व्यथा है ! जरा सोचे और सच्चे मन से जवाब दे ! जरुरी नहीं की जो अभी तक चल रहा हो वो सही हो
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