Friday, 10 May 2019

कबीर का बेटा था : कमाल


कबीर का बेटा था : कमाल। कबीर ने उसे नाम ही 'कमाल' दियाइसीलिये कि कबीर से भी एक कदम आगे छलांग ली उसने।

कबीर ने कहा :-
चलती चक्की देख कर, दिया कबीरा रोए।
दो पाटन के बीच में, साबुत बचा कोए।।
अर्थ - चलती चाकी देखकर (लोगो की जिंदगी चलती देखकर), कबीर साहब को रोना आता है। क्यों की इस चलने वाली जिंदगी में सब को एक दिन छोड़कर जाना है। जिंदगी और मौत ये दो पाटो(चक्की के दो पत्थर) के बीच में सभी पीस पीसकर एक दिन ख़त्म होना है। कुछ लोग इस सच्चाई को जानते हुये भी अनजान बनते है।

कमाल  ने कहा :-
चाकी चाकी सब कहे, कीली कहे ना कोय !
 जो कीली से लाग रहे वाको बाल ना बांका होय !!
चाकी की तो सब बात करते है, लेकीन जो चाकी को घुमाने वाली किली (जो दोनों पाटो के बिच में लगी होती है), उसकी कोई बात नहीं करता। इसी किली पर दोनों चाक आपस में जुड़ कर अनाज पीसते है !
जैसे अनाज का कोई दाना कीली से लगे रह जाने के कारण पीसे जाने से बचा रह जाता है ! वैसे परमात्मा रूपी किली से जुड़े रहने पर भी इस जन्म मृत्यु के झंझट से बचा सकता है ! आत्मा के बार बार के आवागमन से बचा सकता है !!

हरि तत्सत्