Wednesday, 19 October 2016

चतुर्थी (चौथ व्रत) उपवास की कहानी chauth vart upwas ki kahani



आज मैं आपके साथ चौथ व्रत के शुरू होने की कहानी बाँटना चाहता हूँ ! करवा चौथ , तिलकुट्टा की चौथ और भी बहुत है ! सब मिला कर एक वर्ष में बारह चौथ के व्रत मनाये जाते है ! किसी किसी जगह एक या दो व्रत किये जाते है और किसी जगह सभी व्रत किया जाता है !
चौथ व्रत शुरू होने की कहानी का प्राम्भ द्वापर युग के महाभारत काल से जुडी हुई है !
महाभारत का युद्ध ख़त्म हो चूका था और युधिष्ठर राजा बन कर अपनी प्रजा का अपने पुत्रो की तरह उनकी सेवा कर रहे थे !
एक बार भगवान श्री कृष्ण पांडवो से मिलने हस्तिनापुर आये ! सभी लोगो ने उनका दिल खोल कर स्वागत किया और उनका आशीर्वाद लिया !!
सबसे मिलने के बाद भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन एक साथ भोजन करने बैठे !! माता कुंती, जो रिश्ते में कृष्ण की बुआ भी लगती थी, उन्हें खाना परोसने जा रही थी !!
अचानक भगवान श्री कृष्ण को कुछ मजाक सुझा और उन्होंने हाथ में एक धागा पिरोने वाली सुई ली और अर्जुन की तरफ देखते हुए मुस्कुराकर एक सवाल किया " हे पार्थ ! क्या इस सुई के छेद से हाथी निकल सकता है !!
अर्जुन सवाल सुन कर चौंक गया और हैरानी से कहा की हे माधव क्यों मजाक कर रहे हो ! इस सुई के छेद में धागा पिरोना मुश्किल हो जाता है हाथी जाना तो असंभव होगा ! आप ये प्रश्न पूछ कर क्यों मुझसे शरारत कर रहे है !
भगवान श्री कृष्ण ने फिर अर्जुन से कहा " नहीं कोन्तेय ! मैं तुमसे मजाक नहीं कर रहा हूँ और ना ही ये मेरी कोई शरारत का हिस्सा है !!मैं तो बस अपने मन में जागृत इस प्रश्न का जवाब मांग रहा हूँ !
दोनों में इसी बात को लेकर बहस चल रही थी की माता कुंती ने आवाज़ दी, "अगर आप दोनों की बातचीत बंद हो गयी हो तो मैं भोजन करने का प्रबंध करू !
इस पर भगवान श्री कृष्ण ने कहा - नहीं बुआ ! बहुत दिनों से सरोवर में स्नान नहीं किया ! आज पहले सरोवर में स्नान करने जायेंगे और फिर आकर भोजन करेंगे !!
भगवान श्री कृष्ण  और अर्जुन दोनों सरोवर की तरफ चल पड़े ! सरोवर पहुच कर भगवान श्री कृष्ण  ने नहाने से मना कर दिया ! तो अर्जुन हैरत से बोला ये क्या माया है केशव ! कभी न-मुमकिन प्रश्न पूछते हो और अब नहाने से मना कर रहे हो ! जब नहाना नहीं था तो भोजन को मध्य में छोड़ कर क्यों चले आये !!
भगवान श्री कृष्ण  मुस्कुराकर बोले की नहाना तो रोज की बात है ! आज कुछ भिन्न करते है !
अर्जुन अचरज भाव से भगवान श्री कृष्ण की तरफ देखते हुए बोला :- कहा कहिये केशव ! क्या भिन्न करना है
भगवान श्री कृष्ण ने कहा की अर्जुन हम दोनों एक साथ इस सरोवर में गोता लगाएंगे और ज्यादा से ज्यादा देर तक पानी में रहने का प्रयास करेंगे ! ये देखना है की कौन अपना श्वास ज्यादा देर तक रोक कर रख सकता है ! और जो ज्यादा देर तक पानी में रह पाया वो जीत जायेगा !!
और फिर हारने वाला घोडा बनेगा और जीतने वाला उस पर सवारी करेगा और  उस पेड़ (अंगुली से दूर एक पेड़ की तरफ इशारा करते हुए ) के दस चक्कर लगाएगा !!
अर्जुन ने शर्त को मान लिया और दोनों एक साथ सरोवर में कूद गए !
भगवान् तो सब जगह है ! पानी का पानी में ही विलय हो गए !! अर्जुन काफी देर तक श्वास रोके रखा !
बहुत देर के पश्चात् अर्जुन से श्वास लेना मुश्किल हो गया तो उसने हार थक कर सर पानी से बाहर निकाला और जोर जोर से श्वास लिया ! चारो तरफ देखा फिर अपने कपड़ो की तरफ देखा ! जब कपड़ो की तरफ देखा तो चौंक गया ! क्यों की वहाँ पर अर्जुन के वस्त्र नहीं थे ! वहाँ पर अर्जुन के कपडे किसी औरत के कपड़ो में तब्दील हो गए !!
कपडे कहाँ गए ? कौन ले गया होगा ? मन में ऐसे सवालों का जवाब खोजते हुए जब अर्जुन ने अपने शरीर की तरफ देखा तो आश्चर्यचकित रह गया ! वो शरीर अब उसका यानि की अर्जुन का शरीर नहीं था! बल्कि किसी खूबसूरत स्त्री का था ! अर्जुन काफी देर तक समझ नहीं पाया की ऐसा कोनसा शाप लग गया की मैं एक नारी में परिवर्तित हो गया !
मन में भांति भांति के विचार करते हुए अर्जुन नारी रूप में सरोवर से बाहर आया और मन मसोस कर नारी वाले कपडे धारण किये ! और चुपचाप एक पेड़ की छाया में बैठ कर अपने ऊपर अचानक आयी इस विपत्ति के बारे में सोचने लगा !
भगवान श्री कृष्ण ने एक छदम रूप धारण किया ! एक धोबी का वेश धर अर्जुन के पास आये और बोले - हे नारी ! हे रूप सुंदरी ! इस वीरान जंगल में सरोवर किनारे इतना उदास क्यों बैठी है ? हे कुलस्त्री ! किस चिंतन में लगी हो ? किसका इन्तेजार कर रही हो ! कुछ तो अपनी व्यथा कहो ! क्या पता तुम्हारी समस्या का निराकरण मिल जाए !!
भांति भांति प्रकार से विनती करने के बाद अर्जुन ने उस धोबी से अपनी मन की बात कहने का निर्णय ले लिया ! स्त्री बने अर्जुन ने कहा - हे भद्र पुरुष ! मैं तो पता नहीं कहाँ से आयी हूँ और कहाँ मुझे जाना है ! अब तो ये आकाश मेरी छत है और ये पृथ्वी मेरा बिछोना ! इस दुनिया में मेरा कोई नहीं है ! अकेली बैठ के चिंतन कर रही हूँ की कहाँ जाऊं और क्या करूँ ? इस जीवन को त्यागने का मन कर रहा है !
इस पर धोबी बने कृष्ण ने कहा - नहीं सुंदरी ! ऐसा करना शोभा नहीं देता है ! आत्महत्या का तो मन में ख्याल लाना भी पाप है ! देखो मैं भी इस दुनिया में अकेला हूँ ! ये जंगल मेरा घर और पेड़ पौधे और ये पशु पक्षी ही मेरा परिवार है ! क्यों ना हम शादी कर ले !
तुम्हे भी एक सहारे की जरुरत है और मुझे भी ! मेरे घर में भी कोई चूल्हा जलाने वाली आ जाएगी ! सोच लो और अपना उत्तर दो !
अर्जुन ने काफी सोचा और चिंतन किया की इस संसार में अगर बना रहना है तो किसी पुरुष के सहारे की तो जरुरत पड़ेगी ही ! क्यों की इस रूप में तो मुझे कोई पहचानेगा नहीं ! और ना ही कोई मुझे इस रूप में अर्जुन जान पायेगा ! इससे बेहतर है की मैं इस धोबी से शादी कर लू और आगे आने वाला जीवन व्यतीत करू ! क्या पता विधाता ने मेरी किस्मत में क्या लिखा है !
ये सब विचरने के बाद अर्जुन ने शादी के लिए हाँ कह दी ! धोबी बने भगवान् ने उसी वक़्त अर्जुन से गन्धर्व विवाह कर लिया और कहा की वो देखो हमारा छोटा सा घर है उसमे तुम्हे रहना है ! मैं दिन भर में जो कपडे लाऊंगा ! शाम को दोनों मिल कर धोएंगे और दूसरे दिन मैं उन्हें वापिस दे आऊंगा ! जो आमदनी होगी उससे हम अपना गुजर बसर कर लेंगे !
समय चलता रहा ! स्त्री बनी अर्जुन ने एक माह पश्चात् ही एक बेटी को जन्म दे दिया ! और ऐसे करते करते बारह महीनो में उसने बारह बेटियो को जन्म दिया !
कुछ समय धोबी ने भी आना बंद कर दिया ! अर्जुन को अब चिंता सताने लगी की इनका लालन पालन कैसे होगा ? वो अकेली अब क्या क्या कर पायेगी ! ऐसे विचार करते हुए उसने आत्महत्या करने की सोची ! और सरोवर की तरफ कदम बढ़ने शुरू कर दिए ! मैं अकेली क्या कर और इन बच्चियों को लेके कहाँ जाऊं ? इससे अच्छा मरना बेहतर है !  कम से कम ये दिन मुझे तो नहीं देखने पड़ेंगे !
हारा हुआ इंसान नहीं,  निराश और हताश इंसान जल्दी मौत को गले लगता है !
ये सब सोचते सोचते अर्जुन ने सरोवर में जान देने के लिए छलांग लगा दी ! छपाक की आवाज के साथ जैसे ही उसका बदन पानी से टकराया पानी से भगवान श्री कृष्ण मुस्कुराते हुए निकले  और जोर से चिलाये - पार्थ ! तुमने पानी से मुँह बाहर निकाल लिया ! तुम हार गए ! अपनी पराजय स्वीकार करो और बाहर निकलो !
अर्जुन आश्चर्य से अपने शरीर की तरफ देखा तो अपने आपको पूर्ण पुरुष रूप में पाया और कपड़ो की तरफ देखा तो खुद के वस्त्र पाए ! मन में सुकून हुआ की वापिस से पुरुष बन गए ! शायद वो कोई बुरा स्वपन था ! दोनों सरोवर से बाहर आये !
भगवान श्री कृष्ण  ने अर्जुन से कहा की हमारे मध्य हुई शर्त याद है ना पार्थ ! चलो अब तुम घोडा बनो और मुझे अपना सवारी करने का मौका दो ! अर्जुन तो मन में बहुत खुश था की हार गए इसका कोई दुःख नहीं है , ख़ुशी इस बात की है वापिस ये पुरुष शरीर प्राप्त हो गया !!
भगवान श्री कृष्ण  ने सवार बन कर अर्जुन बने घोड़े पर चिन्हित पेड़ के दस चक्कर लगाए !
अब दोनों घर की तरफ चल दिए !!
जब घर आये तो माता कुंती ने कहा की आप लोगो ने बहुत देर कर दी ! अब जल्दी से बैठो, मैं आपको भोजन परोसती हूँ ! दोनों भोजन करने बैठ गए ! अब भगवान श्री कृष्ण तो खाना आराम से खा रहे थे लेकिन अर्जुन से एक भी निवाला ना टूट रहा था ! उसके दिमाग में बस यही सब चल रहा था की मैं तो यहाँ भोजन कर रहा हूँ ! उन बारह कन्याओं का क्या होगा ? जो अभी बिना भोजन के उस भयानक जंगल में अकेले है !!
पता नहीं की अब ज़िंदा भी है या नहीं ? कोई जंगली जानवर उन्हें मार के तो नहीं खा गया ? ऐसे अनेको प्रश्न अर्जुन के मन में चल रहे थे !
भगवान श्री कृष्ण  अर्जुन को देख के मुस्कुरा रहे थे ! उन्होंने अर्जुन से खाना खाने का अनुरोध किया लेकिन अर्जुन से निवाला टूटते नहीं बन रहा था !
तभी भगवान मुस्कुरा कर बोले ! क्यों पार्थ ! इस सुई के छेद से हाथी निकला या नहीं !
अर्जुन चकित होके बोला - मैं समझा नहीं केशव ! आप क्या कहना चाहते है !
भगवान् बोले की - जो दुनिया में असंभव है वो मेरे लिए कुछ नहीं ! मैंने तो असंभव को ही संभव किया है ! महाभारत में तुम्हारी जीत असंभव थी ! लेकिन मेने उसे भी संभव बनाया ! मैं तुम्हे इस सुई के उदहारण के माध्यम से बस यही समझाना चाहता था की ये सृष्टि मेरी बनायीं हुई है और इसका विनाश भी मेरी मर्जी से होगा ! मेरे लिए इस ब्रह्मांड में कुछ असंभव नहीं ! तुम जिन बारह बेटियो की चिंता में खोये हुए हो ! उसे भी तो मेने संभव किया है !
बेटियो का नाम आते ही अर्जुन चौंक गया ! और हाथ जोड़ के प्रभु से सब बताने को कहा ! भगवान् बोले की - तुम अपनी बेटियो की चिंता मत करो ! वो मेरी ही माया का अंश था ! जो अब मुझमे समाहित हो चुकी है ! उन्हें पूरा भारत याद करेगा ! और उनके नाम पर व्रत उपवास रख कर उनकी पूजा करेगा ! विश्व उन्हें "चौथ" के नाम से जानेगा और उनकी तिथि को पत्निया अपने पति की लंबी आयु के लिए उपवास  करेगी ! औरते हर महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को इनका उपवास रखेगी और चंद्र देख कर अपना उपवास खोलेगी ! उस दिन चंद्र में मेरा प्रतिबिम्ब होगा ! उस दिन तुम्हारी बेटियो के नाम से जो उपवास करके मुझे (चंद्र) देख के अपना उपवास खोलेगी ! उन्हें मेरी विशेष कृपा प्राप्त होगी !!
तभी से ये चौथ (चतुर्थी)  व्रत उपवास की शुरुआत हुई है !!

बोलिये बांके बिहारी लाल की जय हो !!

Mukesh Soni